11 June 2019

दूर गली के उस मोड़ पर




दूर गली के उस मोड़ पर

जहां दोनों किनारे मिल से जाते हैं

अक्सर मैं नजरें बिछा ताकता रहता हूं

आओगे इक रोज़ मेरे दरवाज़े तुम भी

बस यही खुद से कहता रहता हूं 

गवाह हैं वो दोनों लैंप पोस्ट भी

जो मेरी कशिश से वाकिफ हैं

ना हो यकीन तो उन पीली गुलाबी चिकों से पूछो

जो हर रोज़ तुम्हारी खुश्बू संजोने के लिए गिर जाती हैं 

ये जो बेलें इस घर की पेशानी पर रंग बिखेर रही हैं

ये उस दिन से हरी हैं जब तुम आखिरी बार इस राह से गुज़रे थे

आज चार रोज़ बीत गए, इंतज़ार और सहा नहीं जा रहा

बेलें कुछ मुरझाने की शिकायत कर रही हैं

चिको में खुश्बू भी कुछ कम सी होती जा रही है

सुनो! बताओ... आज आओगे? चिकें खोल दूं?

खुश्बू मुझे वापिस से भरनी है

निगाहें फिर से हरी करनी हैं।