01 November 1997

इक तारा...!!!

दूर गगन में इक तारा है
सब तारों से न्यारा है
घंटों बैठ बचपन से जिसे, मैंने खूब निहारा है
दूर गगन में इक तारा है...
मेरी जीत मेरी हार,मेरी नफ़रत मेरा प्यार
हर राज़ का है वो राज़दार
मेरे सुख दुख का वोही तो इक सहारा है
दूर गगन में इक तारा है...
तुम्हारी यादों का सफ़र भी मैंने 
उसी के संग गुज़ारा है
तुम्हारे बाद, मेरी तन्हाइयों का वही इक सहारा है
जब भी तुम्हारी याद आई
उसी को मैंने पुकारा है
दूर गगन में इक तारा है...
गर मिलो मुझे फिर कभी
तो मिलना उस तारे से भी
पूछना उससे की तुम बिन
कैसे समय गुज़ारा है
दूर गगन में इक तारा है...
वो बातें जो कह ना सका तुमको
कह डालीं उसको
ना समझ पाया कि वोह तुम नहीं, इक तारा है
देखूं जब भी उसे यूँ लगे
कि जैसे चेहरा तुम्हारा है
दूर गगन में इक तारा है...