18 October 2010

फ़नकारा-ए-ग़म - सलमा आगा

फ़नकारा-ए-ग़म - सलमा आगा

आज ऑफीस की सीढ़ियाँ चढ़ते हुए ये गज़ल सुनी तो बस जी भर आया...

शायद उनका आख़िरी हो ये सितम....
शायद उनका आख़िरी हो ये सितम....
हर सितम ये सोच कर हम सह गये...
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खुद को भी हमने मिटा डाला मगर.....
फ़ांसले जो दरमियाँ थे रह गये.....
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क्या दर्द था सलमा जी की आवाज़ में. एक अजीब सा नशा. कम ही बनते हैं ऐसे फनकार दुनिया में...
अल्लाह उनकी रूह को सलामत रखे...