क्यों लगा बैठता है इंसान दिल किसी से
जानते हुए की मिलन है नामुमकिन उससे
क्यों कर बैठता है दिल म्होब्बत किसी से
जानते हुए की म्होब्बत है उसे किसी और से
छलकते हैं क्यों यह अश्क पलकों से ह्मारी
क्यों उड़ जाती हैं नींदें आँखों से ह्मारी
दिखती है क्यों ख्वाबों में तस्वीर सिर्फ़ तुम्हारी
क्यों देती है हरपल सुनाई, आवाज़ वो तुम्हारी
जाती नहीं क्यों इस दिल से यादें तुम्हारी
क्यों समा गये तुम दिल की गहराइयों में ह्मारी
समा कर इस दिल में क्यों हो गये तुम जुदा
क्यों रह गया इस भीड़ में मैं अकेला और तन्हा
सुना था अंजाम-ए-म्होब्बत नहीं होता कभी बुरा
फिर मुझे ही क्यों मिला म्होब्बत का ये सिला...